मक्का की खेती: मुनाफे के साथ भरपूर पैदावार

मक्का, जिसे भारत में भुट्टा के नाम से भी जाना जाता है, एक बहुआयामी फसल है। इसका उपयोग अनाज के रूप में, सब्जी के रूप में (भुट्टे के रूप में) और पशुओं के चारे के लिए भी किया जाता है। मक्का की खेती भारतीय किसानों के लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत हो सकती है। आइए, मक्का की सफल खेती के लिए जरूरी जानकारी को विस्तार से जानें।

आर्थिक महत्व (Economic Importance)

मक्का की मांग लगातार बढ़ रही है क्योंकि यह बहुपयोगी फसल है। इससे अनाज, दाने, मक्के का आटा, कॉर्नफ्लेक्स, स्टार्च और तेल आदि प्राप्त होते हैं। साथ ही, यह पशुओं का पौष्टिक चारा भी है। इसकी अच्छी उपज और बाजार भाव किसानों को अच्छा मुनाफा दिलाते हैं।

वायुवायु संबंधी आवश्यकताएँ (Climatic Requirements)

मक्का गर्म जलवायु वाली फसल है। इसके अच्छे विकास के लिए 21 से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है। यह कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाई जा सकती है।

मृदा संबंधी आवश्यकताएँ (Soil Requirements)

जलोत्सारण क्षमता वाली बलुई-दोमट से लेकर मध्यम दोमट मिट्टी मक्का की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए।

भूमि तैयार करना (Land Preparation)

खेत की अच्छी जुताई करें और मिट्टी को भुरभुरा बनाएं। 2 से 3 बार जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल करें। यदि पिछली फसल धान की रही हो तो खेत की गहरी जुताई करें।

बुवाई का समय (Time of Sowing)

खरीफ सीजन में मानसून की शुरुआत, जून से जुलाई का महीना, मक्का की बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त समय होता है। कुछ क्षेत्रों में रबी सीजन में भी इसकी खेती की जाती है।

बुवाई की विधि (Method of Sowing)

मक्का की बुवाई सीधी कतारों में की जाती है। कतारों के बीच 60 से 75 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 20 से 25 सेंटीमीटर का अंतर रखें। बीजों को 3 से 5 सेंटीमीटर गहराई में बोएं।

बीजों की दर (Seed Rate)

एक हेक्टेयर खेत में लगभग 50 से 60 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। यह बीज की किस्म और दाने के आकार पर निर्भर करता है।

बीज उपचार (Seed Treatment)

बुवाई से पहले बीजों को उपयुक्त फफूंदनाशक से उपचारित करें। इससे बीजों को मिट्टी जनित रोगों से बचाया जा सकता है।

खाद और उर्वरक (Manures and Fertilizers)

खेत की तैयारी के समय 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद डालें। बुवाई के समय 100 किलोग्राम यूरिया, 60 किलोग्राम डीएपी और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। फसल की सिंचाई के बाद यूरिया की शीर्ष ड्रेसिंग करें।

सिंचाई (Irrigation)

मक्का की फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन सूखे के समय खासकर गर्मी और दाने बनने के समय हल्की सिंचाई करते रहें। जलभराव से बचना चाहिए।

सिंचाई कार्यक्रम (Irrigation Schedule)

बुवाई के बाद पहली सिंचाई करें। इसके बाद, 10 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहें।

निराकरण और खरपतवार नियंत्रण (Interculturing and Weeding)

बुवाई के 20-25 दिन बाद पहली निराकरण करें। इससे मिट्टी भुरभुरी रहती है और खरपतवार नियंत्रण में भी मदद मिलती है। जरूरत के अनुसार निराकरण दोहराएं। खरपतवारों की रोकथाम के लिए उग आए खरपतवारों को हाथ से निकाल दें या फिर खरपतवारनाशक का प्रयोग करें। रासायनिक खरपतवारनाशक का प्रयोग कृषि विशेषज्ञों की सलाह अनुसार ही करें।

कटाई (Harvesting)

मक्का की कटाई फसल के दानों के पकने के आधार पर की जाती है। जब दाने कठोर हो जाएं और उनमें से दूध निकलना बंद हो जाए, तब कटाई का सही समय होता है। कटाई के समय सूखे मौसम का चुनाव करें। भुट्टों को तोड़ने के बाद खेत से निकालकर छायादार जगह में सुखाएं।

अंतिम रूप से (In Conclusion)

मक्का की खेती थोड़ी सी देखभाल के साथ अच्छी पैदावार और मुनाफा दे सकती है। उपरोक्त जानकारी का पालन करके और कृषि विभाग या कृषि विज्ञान केंद्रों से सलाह लेकर आप मक्का की सफल खेती कर सकते हैं।

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