रागी की खेती: पोषण का खजाना और किसानों की आय का सहारा (Finger Millet Farming: A Treasure Trove of Nutrition and a Source of Income for Farmers)

रागी, जिसे मंडुआ के नाम से भी जाना जाता है, एक पारंपरिक और पौष्टिक अनाज है। यह प्रोटीन, कैल्शियम और फाइबर से भरपूर होता है। रागी की खेती भारतीय किसानों के लिए न सिर्फ सेहत का खजाना उगाने का जरिया है, बल्कि इससे अच्छी कमाई भी हो सकती है। आइए, रागी की सफल खेती के बारे में विस्तार से जानें।

आर्थिक महत्व (Economic Importance)

रागी की मांग लगातार बढ़ रही है। यह एक लाभदायक फसल है क्योंकि इसकी खेती कम लागत में की जा सकती है। सूखा सहनशील होने के कारण कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी इसकी अच्छी पैदावार होती है। रागी का बाजार भाव भी अच्छा मिलता है, जो किसानों की आय बढ़ाने में मदद करता है।

वायुवायु संबंधी आवश्यकताएँ (Climatic Requirements)

रागी गर्म जलवायु वाली फसल है, लेकिन अधिक गर्मी इसकी पैदावार को प्रभावित कर सकती है। 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान इसकी अच्छी वृद्धि के लिए उपयुक्त माना जाता है। यह कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाई जा सकती है।

मृदा संबंधी आवश्यकताएँ (Soil Requirements)

रागी की खेती के लिए विभिन्न प्रकार की मिट्टी उपयुक्त होती है, लेकिन जल निकास अच्छा होना चाहिए। बलुई-दोमट से लेकर लाल मिट्टी तक में इसकी खेती की जा सकती है। यह थोड़ी क्षारीय मिट्टी को भी सहन कर लेती है।

भूमि तैयार करना (Land Preparation)

बुवाई से पहले खेत की कम से कम 2 बार जुताई करें। पहली जुताई गहरी करके खरपतवार और अवशेषों को मिट्टी में मिला दें। दूसरी जुताई बुवाई से 10-15 दिन पहले हल्की करके पाटा लगाएं।

बुवाई का समय (Time of Sowing)

रागी की बुवाई खरीफ सीजन में, मानसून की शुरुआत के साथ, जुलाई से अगस्त के महीने में की जाती है। कुछ क्षेत्रों में कम वर्षा वाले समय में रबी सीजन में भी इसकी खेती की जा सकती है।

बुवाई की विधि (Method of Sowing)

रागी की बुवाई बीजों को सीधे खेत में छिड़काव करके या कतारों में करके की जा सकती है। छिड़काव विधि में, बीजों को समान रूप से खेत में छिड़कें और फिर हल्के से मिट्टी से ढक दें। कतार बुवाई में, कतारों के बीच 20 से 25 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 5 से 8 सेंटीमीटर का अंतर रखें।

बीजों की दर (Seed Rate)

एक हेक्टेयर खेत में लगभग 5 से 7 किलोग्राम रागी के बीज की आवश्यकता होती है। यह बुवाई की विधि पर निर्भर करता है। छिड़काव विधि में थोड़ा अधिक बीज की आवश्यकता हो सकती है।

बीज उपचार (Seed Treatment)

बुवाई से 24 घंटे पहले बीजों को गोमूत्र या उपयुक्त जैविक फफूंदनाशक घोल में भिगोकर रखने से अंकुरण में सुधार होता है।

खाद और उर्वरक (Manures and Fertilizers)

बुवाई से पहले 5 से 10 टन प्रति हेक्टेयर अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद डालें। नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की पूर्ति के लिए 20 किलोग्राम यूरिया, 40 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 20 किलोग्राम म्यूरिएट ऑफ पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डालें।

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