बाजरा की खेती: कम लागत, ज्यादा फायदा (Pearl Millet Farming: Low Cost, High Profits)
बाजरा, जिसे “गरीबों का ज्वार” भी कहा जाता था, अब “धन का अनाज” बन गया है। यह पोषक तत्वों से भरपूर मोटा अनाज है, जिसकी खेती कम लागत में की जा सकती है और मुनाफा भी अच्छा मिलता है। आइए, भारतीय किसानों के लिए लाभदायक बाजरा की खेती के बारे में विस्तार से जानें।
आर्थिक महत्व (Economic Importance)
बाजरा की खेती कम उपजाऊ और कम बारिश वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसकी फसल जल्दी तैयार हो जाती है, सूखा सहन करती है और कम सिंचाई की जरूरत होती है। इसकी बढ़ती मांग और अच्छे बाजार भाव किसानों को अच्छी आमदनी दिलाते हैं।
वायुवायु संबंधी आवश्यकताएँ (Climatic Requirements)
बाजरा गर्म जलवायु वाली फसल है। 20 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान इसके अच्छे विकास के लिए उपयुक्त होता है। यह कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाई जा सकती है।
मृदा संबंधी आवश्यकताएँ (Soil Requirements)
बाजरा की खेती के लिए सभी प्रकार की मिट्टी उपयुक्त होती है, लेकिन बलुई या दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। यह कम उपजाऊ और क्षारीय मिट्टी को भी सहन कर सकती है। हालाँकि, जल निकास अच्छा होना चाहिए।
भूमि तैयार करना (Land Preparation)
बुवाई से पहले खेत की कम से कम 2 बार जुताई करें। पहली जुताई गहरी करके खरपतवार और अवशेष मिट्टी में दबा दें। दूसरी जुताई बुवाई से 10-15 दिन पहले हल्की करके पाटा लगाएं।
बुवाई का समय (Time of Sowing)
बाजरा की बुवाई खरीफ सीजन में, मानसून की शुरुआत के साथ, जून से जुलाई के महीने में की जाती है। कुछ क्षेत्रों में कम वर्षा वाले समय में रबी सीजन में भी इसकी खेती की जा सकती है।
बुवाई की विधि (Method of Sowing)
बाजरा की बुवाई सीधी कतारों में की जाती है। कतारों के बीच 15 से 20 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 5 से 8 सेंटीमीटर का अंतर रखें। बीजों को 2 से 3 सेंटीमीटर गहराई में बोएं।
बीजों की दर (Seed Rate)
एक हेक्टेयर खेत में लगभग 8 से 10 किलोग्राम बाजरा के बीज की आवश्यकता होती है। यह बीज की किस्म पर निर्भर करता है।
बीज उपचार (Seed Treatment)
बुवाई से पहले 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपयुक्त बीज उपचारक से बीजों का उपचार करें। इससे बीजों को मिट्टी जनित रोगों से बचाया जा सकता है।
खाद और उर्वरक (Manures and Fertilizers)
बुवाई से पहले 5 से 10 टन प्रति हेक्टेयर अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद डालें। नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की पूर्ति के लिए 20 किलोग्राम यूरिया, 40 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 20 किलोग्राम म्यूरिएट ऑफ पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डालें।
सिंचाई (Irrigation)
बाजरा कम सिंचाई वाली फसल है। सूखे के समय हल्की सिंचाई करें, खासकर जब पौधे निकल रहे हों और दाने बनने का समय हो। जलभराव से बचना चाहिए।
सिंचाई कार्यक्रम (Irrigation Schedule)
बुवाई के बाद पहली सिंचाई करें। इसके बाद, 15-20 दिनों के अंतराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें। दाने बनने के समय हल्की सिंचाई करें।
निराकरण और खरपतवार नियंत्रण (Interculturing and Weeding)
बुवाई के 20-25 दिन बाद पहली निराकरण करें। इससे मिट्टी भुरभुरी रहती है, खरपतवार नियंत्रण में मदद मिलती है और पौधों की जड़ों तक हवा पहुंचती है। जरूरत के अनुसार निराकरण दोहराएं। खरपतवारों को हाथ से निकाल सकते हैं या फिर खरपतवारनाशक का प्रयोग कर सकते हैं। रासायनिक खरपतवारनाशक का प्रयोग कृषि विशेषज्ञों की सलाह अनुसार ही करें।
कटाई (Harvesting)
बाजरा की कटाई फसल पकने के बाद, दानों के कठोर हो जाने पर की जाती है। जब दाने पीले या भूरे रंग के हो जाएं और सूखने लगें, तो कटाई का समय होता है। कटाई के लिए सूखे मौसम का चुनाव करें।を手 से काटें या दरांती से काटकर खेत में कुछ दिनों के लिए सूखने दें। इसके बाद, दानों को अलग करने के लिए दाना निकालने की मशीन का प्रयोग करें या डंडों को पीटकर दाने अलग कर लें।
अंतिम रूप से (In Conclusion)
बाजरा की खेती कम लागत और कम देखभाल वाली फसल है। सूखा सहनशीलता और कम सिंचाई की जरूरत के कारण यह कम उपजाऊ भूमि के लिए भी उपयुक्त विकल्प है। उपरोक्त जानकारी और कृषि विशेषज्ञों की सलाह से आप बाजरा की सफल खेती कर अच्छी कमाई कर सकते हैं।